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सरकारी बजट और अर्थव्यवस्था Notes in Hindi Government budget and economy Macro Economics sarakari bajataur arthavyavastha 12 class UNIT - IV chapter- 10

 

सरकारी बजट और अर्थव्यवस्था Government budget


बजट 

बजट का अर्थ : "बजट आगामी वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय और अनुमानित व्यय का मदवार (Item-wise) विवरण होता है।

साधारण शब्दों में बजट विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों का ब्योरा होता है। इस के दो भाग होते हैं 

1. प्राप्तियाँ 

2. व्यय


बजट के उ‌द्देश्य

1. आर्थिक विकास 

  • देश के आर्थिक विकास को बढ़ाना ताकि लोगों का जीवन स्तर अच्छा हो सके। 
  • आर्थिक विकास से ही अर्थव्यवस्था में वास्तु व सेवाओं की उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है।
  • भारत एक कल्याणकारी देश है जिसे आम लोगो के कल्याण के अनुकूल बजट नीति अपनानी होती है।


2. आय में विषमता दूर करना 

  • आय में विषमता कम करने प्रगतिशील करों और आर्थिक सहायता द्वारा सरकार आय और संपत्ति में विषमता दूर कर सकती है।
  •  जैसे - अमीरों की आय पर और उनके द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर अधिक कर लगाकर अमीरों की प्रयोज्य आय कम की जा सकती है। 
  • गरीबों को आर्थिक सहायता देकर, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएँ मुफ्त देकर और सस्ती दर पर राशन उपलब्ध कराकर आय में विषमता कम की जा सकती है।

3. आय के पुन वितरण 

  • आय के पुन वितरण से अभिप्राय यह है कि अमीर लोगों में धन केन्द्रित न हो और गरीब लोगों की वास्तविक आय में वृद्धि होती जाए। 
  • इसके लिए करो (taxes), आर्थिक सहायता और सार्वजनिक व्यय जैसे उपायों का प्रयोग किया जा सकता है। 
  • सामाजिक कल्याण बढ़ाने के लिए आय का पुनः वितरण बहुत जरुरी है।


4. संसाधनों के उचित वितरण 

  • देश के संसाधनों का आवंटन विभिन्न क्षेत्रों का प्राथमिकताओं के अनुसार सामाजिक व आर्थिक संतुलित विकास करना बजट का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। 
  • निवेश को प्रभावित करने के लिए सरकार द्वारा कर नीति व आर्थिक सहायता की नीति अपनाई जा सकती है।
  • सरकार उत्पादक क्षेत्रों को अधिक फंड देकर और अन्य क्षेत्रों से वापस लेकर विभिन्न क्षेत्रों के विकास में संतुलन ला सकती है।


5. आर्थिक स्थिरता

  • सरकार सामान्य कीमत स्तर को नियंत्रित करके मंदी व तेजी की स्थिति पर काबू पा सकती है जिससे आर्थिक स्थिरता लाई जा सकती है। 
  • इसके लिए करों, आर्थिक सहायता व सार्वजनिक व्यय का उपयोग किया जा सकता है।


6. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध तथा वित्तीयन

  • रेलवे, भारत पेट्रोलियम , विद्युत कंपनी, भारतीय खाद्य निगम आदि जैसे सार्वजनिक उद्यमों का कुशलतापूर्वक प्रबंध करने और वित्तीयन से देश की बजट जरूरतों को भली-भाँति पूरा किया जा सकता है।


सरकारी बजट के घटक  

सरकारी बजट के घटक


सरकार की बजट प्राप्तियाँ

  • सरकार की बजट प्राप्तियाँ दो प्रकार से होती है।   

1. राजस्व प्राप्तियाँ :  ये वह सरकारी प्राप्तियाँ जिनसे सरकार की 

I. दनदारियाँ (Liabilities) उत्पन्न नहीं होतीं।

II. परिसंपत्तियाँ (Assets) कम नहीं होती है। 


2. पूँजीगत प्राप्तियाँ : ये वह सरकारी प्राप्तियाँ जिनसे सरकार की

I. देनदारियाँ (Liabilities) उत्पन्न होतीं है। 

II. परिसंपत्तियाँ (Assets) कम होती है। 

 

बजट (सरकारी) प्राप्तियाँ


I. राजस्व प्राप्तियाँ


1. कर राजस्व : कर राजस्व, सरकार द्वारा लगाए गए सभी करो और शुल्कों से प्राप्त राशियों का योग होता है। कर एक कानूनी अनिवार्य भुगतान है जो सरकार द्वारा व्यक्तियों व कंपनियों की आय व लाभ पर लगाया जाता है इसके बदले कोई सरकारी सेवा का संबंध नहीं होता । ये दो प्रकार के है

 

I. प्रत्यक्ष कर :- जब कर अदा करने की देनदारी और कर का भार एक ही व्यक्ति पर पड़ता है तो उस कर को प्रत्यक्ष कर कहते हैं। जैसे- आयकर, निगम कर, व्यय कर , धन कर , उपहार कर 


II. अप्रत्यक्ष कर : - अप्रत्यक्ष कर वह होता है जिसका आरंभिक भार या प्रभाव एक व्यक्ति पर पड़ता है, लेकिन वह भार दूसरे व्यक्ति पर डालने में सफल हो जाता है । जैसे - जीएसटी (GST) विक्रय कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क, सेवा कर, मूल्य वृद्धि


2. गैर-कर राजस्व :- यह भी सरकार की आय (राजस्व) का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जो सरकार के प्रशासनिक कार्यों से सृजित होती है। इसमें सरकारी उ‌द्यमों द्वारा बेची गई वस्तुओं से व सरकारी विभागों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त आय शामिल की जाती है। जैसे -


1. ब्याज प्राप्तियाँ :- केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्री, स्थानीय सरकारी, निजी उ‌द्यमों व लोगों को दिए गए ऋण पर बड़ी मात्रा में ब्याज प्राप्त होता है। 


2. लाभ और लाभांश :- सरकार ने सार्वजनिक उद्यम स्थापित किए हैं जो पदार्थ व सेवाओं का उत्पादन करते हैं और बिक्री से लाभ अर्जित करते हैं। जैसे- राष्ट्रीयकृत बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय बीमा निगम (LIC),आदि इनसे सरकार को लाभांश भी प्राप्त होता है।


3. अधिग्रहण या स्वायत्तता :- जो लोगों द्वारा बिना किसी कानूनी उत्तराधिकारी के छोड़ी गई संपत्ति से प्राप्त होती है। ऐसी संपत्ति का कोई दावेदार नहीं होता। सरकार इसका अधिग्रहण कर लेती है


4. विशेष आकलन :- जब सरकार किसी विशेष क्षेत्र में सड़कें, नालियाँ व पार्क बनवाती है या सीवरेज व्यवस्था उपलब्ध करवाती है तो वहा के मकान मालिकों से उनकी संपत्ति को पहुँचने वाले लाभ का विशेष आकलन करके, सुधारों पर किए गए व्यय का कुछ भाग वसूल करती है। इसे विशेष आकलन कहते हैं जो सरकार की आय का एक स्रोत बन जाता है। 


5. विदेशी सहायता अनुदान : सरकार को विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ( जैसे -WHO, UNESCO आदि ) से अनुदान, उपहार भेंट और योगदान के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। । यह भी गैर-कर राजस्व का एक स्रोत है।


6. फीस और जुरमाना :- सरकार को विभिन्न प्रशासकीय कार्यों से आय होती है। जैसे - स्कूल में पढ़ाई की फीस, अस्पताल में कार्ड बनवाने की फीस, भूमि की रजिस्ट्री करवाने की फीस, पासपोर्ट बनवाने की फीस, कोर्ट फीस, स्कूटर - कार चलाने हेतु लाइसेंस बनवाने की फीस आदि आदि। इसी प्रकार कानून तोड़ने वालों से जुरमाने के रूप में भी सरकार की आय होती है।



II. पूँजीगत प्राप्तियाँ

  • सरकार की वे प्राप्तियाँ जो देनदारियाँ पैदा करती हैं या जो परिसंपत्तियाँ कम कर देती हैं पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। सरकार की पूँजीगत प्राप्तिया 


1. आंतरिक व विदेशी ऋण : सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए खुले बाजार से, भारतीय रिजर्व बैंक से, विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे-विश्व बैंक) से कर्ज लेती है। उधार की यह धनराशि पूँजीगत प्राप्ति है, क्योंकि इसमें सरकार की देनदारी निहित है।


2. ऋणों व अग्रिमों की वसूली : केंद्र सरकार द्वारा, राज्य सरकारों व केंद्रशासित प्रदेशों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों व विदेशी सरकारों को जो ऋण जो भूत काल में दिए गए थे, उनकी वसूली, पूँजीगत प्राप्ति का अंग है।


3. विनिवेश : सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उ‌द्यमों के शेयर्स पूर्ण रूप या आंशिक रूप से बेच कर पूँजी प्राप्त करती है इसे विनिवेश या निजीकरण भी कहा जाता है, क्योंकि इससे सरकारी उ‌द्यमों का स्वामित्व निजी क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाता है।


4. लघु बचतें : इसमें छोटी-छोटी बचतें, जैसे - डाकघर बचत खातों में जमा, सामान्य भविष्य निधि (GPP) में जमा, राष्ट्रीय बचत योजना (NSS) में जमा, किसान विकास पत्रों के रूप में जमा राशियाँ शामिल की जाती हैं।



सरकार की बजट व्यय 


बजट (सरकारी) व्यय 


1. राजस्व व्यय 

  • राजस्व व्यय जिस व्यय से न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही देनदारियाँ में कमी आती है उसे राजस्व व्यय माना जाता है।
  • वह राजस्व व्यय जो सरकार के विभागों के सामान्य कार्यों, विभिन्न सेवाओं, ब्याज भुगतान तथा आर्थिक सहायात आदि पर किया जाता है। 
  • राजस्व व्यय से किसी संपत्ति का सृजन नहीं होता है 
  • राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व व गैर - कर राजस्व से प्राप्त आय) के खाते से किया जाता है  


राजस्व व्यय के उदाहरण हैं – 


1. सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह 

2. लिए गए ऋण पर ब्याज की आध्वगी

3. पेंशन, आर्थिक सहायता, अनुदान

4. ग्रामीण विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य 

5. रक्षा सेवाएँ 



2. पूँजीगत व्यय


जिस व्यय के फलस्वरूप परिसंपत्तियों का निर्माण हो या देनदारियों में कमी आए, वह पूँजीगत व्यय माना जाता है। पूँजीगत व्यय, सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों ( जिसमें शेष संसार से पूँजी हस्तांतरण भी शामिल है ) के खाते से किए जाते हैं।


1. भूमि, इमारतों, मशीनरी, उपकरण आदि जैसी पूँजीगत संपतियों की प्राप्ति पर व्यय


2. शेयर्स की खरीदारी पर व्यय जब सरकार घरेलू या बहुराष्ट्रीय निगम के शेयर खरीदती है तो सरकार की परिसंपत्ति में वृद्धि होती है। 


3. राज्यों व केंद्र शासित सरकारों तथा सरकारी कंपनियों को दिए गए ऋण शामिल किए जाते हैं। 



बजटीय घाटा

  

बजटीय घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) का, कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजीगत प्राप्तियाँ) से अधिक होने से है। दूसरे शब्दों में, जब सरकार की चालू राजस्व प्राप्तियों और निवल पूँजीगत प्राप्तियों का जोड़, कुल व्यय से कम रह जाता है तो उसे बजटीय घाटा (या कुल बजट घाटा) कहते हैं।

  

बजट घाटा : कुल व्यय - कुल प्राप्तियाँ


बजटीय घाटे के माप

1. राजस्व घाटा

2. राजकोषीय घाटा

3. प्राथमिक घाटा



1. राजस्व घाटा


राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार की राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में राजस्व व्यय के अधिक होने से है। सरकार जब प्राप्त किए गए राजस्व से अधिक व्यय करती है तो उसे राजस्व घाटा सहना पड़ता है। 


राजस्व घाटा = कुल राजस्व घाटा - कुल राजस्व प्राप्तियों


प्रभाव :-  


1. राजस्व घाटा सरकार की अवबचतों को दर्शाते हैं, क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजीगत प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है ।


2. चूँकि सरकार अपने आधिक्य उपभोग व्यय को मुख्यत पूँजी खाते से उधार लेकर पूरा करती है, इसलिए स्फीतिकारी स्थिति (कीमतों में निरंतर वृद्धि) उत्पन्न होने का भय बना रहता है।

 

3. राजस्व घाटे को पूरा करने हेतु लिए गए ऋण से कर्ज का भार और बढ़ जाता है, क्योंकि ऋण की राशि और उस पर ब्याज वापस करना होता है जिससे भविष्य में राजस्व घाटा और बढ़ता है।



2. राजकोषीय घाटा


राजकोषीय घाटे का अर्थ है सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) का उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार बिना पूँजीगत प्राप्तियाँ) से अधिक हो जाना।


राजकोषीय घाटा = कुल व्यय - उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ 

                      = कुल व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ - उधार रहित पूँजीगत प्राप्तियाँ


Note :- राजकोषीय घाटा वास्तव में उधार के बराबर होता है।



प्रभाव :


1. स्फीतिकारी स्थिति :- (कीमतों में निरंतर वृद्धि की स्थिति) पैदा होने की संभावना बनी रहती है, क्योंकि घाटे को पूरा करने के लिए सरकार RBI से ऋण लेती है जिसके लिए RBI नए नोट छापता है। फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा बढ़ने से कीमतों के बढ़ने की स्थिति पैदा हो जाती है।


2. विदेशों पर निर्भरता :- विदेशों से ऋण लेने के कारण देशों का भारत में आर्थिक व राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ जाता है। 


3. ऋण का फंदा - राजकोषीय घाटा ऋण से पूरा किया जाता है। इससे सरकार द्वारा लिए गए ऋण की मात्रा बढ़ती जाती है, भविष्य में बढ़ते ब्याज के साथ ऋण वापस करने की देनदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं जो अंत में एक ऋण कुचक्र या फंदे का रूप धारण कर लेती है। 


4. उच्च राजकोषीय घाटा और कम जीडीपी वृद्धि का दुष्चक्र : लगातार उच्च राजकोषीय घाटा एक ऐसी स्थिति को जन्म देता है जहां -

i.  उच्च राजकोषीय घाटे के कारण जीडीपी वृद्धि कम रहती है

ii. कम जीडीपी वृद्धि के कारण राजकोषीय घाटा उच्च रहता है।


5. सरकार की विश्वसनीयता में कमी :- उच्च राजकोषीय घाटा (बढ़ता राष्ट्रीय ऋण) घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में सरकार की विश्वसनीयता को कम करता है। सरकार (और अर्थव्यवस्था) की 'क्रेडिट रेटिंग' कम हो जाती है। कम क्रेडिट रेटिंग के कारण, वैश्विक निवेशक घरेलू अर्थव्यवस्था से अपना निवेश वापस लेना शुरू कर देते हैं। परिणामस्वरूप, जीडीपी वृद्धि कम हो जाती है।


3. प्राथमिक घाटा 


यह राजकोषीय घाटा सरकार और भुगतान किए जाने वाले ब्याज का अंतर है। अंत: इसका अनुमान राजकोषीय घाटे से ब्याज की अदायगियाँ घटाने से लगाया जाता है। 


प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज अदायगियाँ


महत्व

  • दोनों में अंतर स्पष्ट है जहाँ राजकोषीय सरकार की ब्याज समेत उधार की जरूरत दर्शाता है वहाँ प्राथमिक घाटा सरकार की ब्याज रहित उधार की जरूरत दर्शाता है।



संतुलित बजट और असंतुलित बजट 


1. संतुलित बजट 

सरकार का वह बजट जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ (राजस्व व पूँजीगत), सरकार के अनुमानित व्यय के बराबर दिखाई गई हों, संतुलित बजट कहलाता है। 


संतुलित बजट : अनुमानित प्राप्तियाँ = अनुमानित व्यय


संतुलित बजट के मुख्य गुण हैं -

  • यह वित्तीय स्थायित्व को यकीनी बनाता है
  • यह फिजूलखर्ची से बचाता है। 


संतुलित बजट दोष हैं -

  • आर्थिक विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है
  • कल्याणकारी पगों का क्षेत्र सीमित हो जाता है। 



2. असंतुलित बजट

  • असंतुलित बजट वह बजट होता है जिसमें सरकार की प्राप्तियाँ और व्यय बराबर नहीं होते। यह निम्न में से कोई भी स्थिति हो सकती है


1. बचत का बजट। 

2. घाटे वाला बजट।


1. बचत का बजट : 

जब बजट में सरकार की प्राप्तियाँ, सरकार के खर्चों से अधिक दिखाई जाती हैं तो उस बजट को बचत का बजट कहते हैं। सरकार का राजस्व, सरकार के व्यय से अधिक होता है। 


बचत का बजट : अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ > अनुमानित सरकारी व्यय


बचत का बजट के गुण


1. सरकारी बजट में बचत से देश की वित्तीय स्थिरता बढ़ती है।

2. बजट में बचत का हिस्सा भविष्य की विकास परियोजनाओं इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश किया जा सकता है 

3. सरकारी बचत बजट से अनावश्यक खर्चों को नियंत्रित कर मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकता है।



बचत का बजट के दोष


1. सरकारी बचत बजट के कारण सरकारी खर्चों में कटौती हो सकती है, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है।

2. महत्वपूर्ण परियोजनाओं में कटौती होती है, तो जनता में असंतोष फैल सकता है।

3. सरकार के प्रति विश्वास में कमी आ सकती है।



2. घाटे का बजट : 


जब बजट में सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से अधिक दिखाया जाता है तो उस बजट को घाटे का बजट कहते हैं। घाटे के बजट में सरकारी व्यय, सरकार की आय से अधिक होता है।


घाटे का बजट : अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय



विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे के बजट के विशेष लाभ हैं। 

1. यह आर्थिक संवृद्धि की गति को बढ़ाता है

2. यह लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रम को लागू करने में सहायक है।


विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे के बजट के विशेष दोष भी हैं।

1. यह सरकार की अनावश्यक और फिजूलखर्ची को बढ़ाता है

2. इससे वित्तीय और राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न होने का डर बना रहता है।


तेजी (निरंतर बढ़ती हुई कीमतों) की स्थिति में बचत वाला बजट और मंदी (कीमतों और रोजगार में गिरावट) की स्थिति में घाटे वाला बजट अपनाना चाहिए।


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